रविवार, 19 सितंबर 2010

बचाओ धरती माता को


anirudh joshi

वैज्ञानिकों ने अतीत और वर्तमान के आँकड़े इकठ्ठे कर अपने कम्प्यूटर में दर्ज कर जब तीस साल के बाद की पृथ्‍वी के हालात जानना चाहे तो यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी बल्की कोई संवेदनशील हो तो उसके लिए मानसिक आघात होगा।

धरती का तापमान पूरे एक डिग्री बड़ चुका है। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ती जा रही है, समुद्र का जल स्तर 1.5 मिलीमीटर प्रतिवर्ष बढ़ रहा है और अमेजन के वर्षावन तेजी से खत्म होने के लिए तैयार है बस यह तीन स्थिति ही धरती को खतम करने के लिए काफी है। यह स्थिति क्यों बनी जरा इस पर सोचे।

समुद्र, जंगल और ग्लेशियर यह तीनों मिलकर धरती की 90 प्रतिशत गर्मी को तो रोक ही लेते है साथ ही धरती के वेदर और क्लाइमेट को मानव जीवन अनुसार बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

मनुष्‍य की कारस्तानी :

1.मनुष्य ने जहाँ नदियों को प्रदूषित कर सूखाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी वहीं पृथ्‍वी को जगह-जगह से छेद कर अंदर का पानी भी उपर तेजी से खींच लिया है। लगातार वर्षावनों के कटते रहने से मानसून भी बिखर और बिगड़ गया है। ऑस्ट्रेलिया में लगी विश्‍व की सबमें बड़ी आग बुझने का नाम ही नहीं ले रही है तो दूसरी और से खबर आ रही है कि अफ्रीका के जंगल भी आग की भेंट चढ़ने लगे है।

2.तमाम तरह का औद्योगिक उत्पादन और उसका कचरा समेटे नहीं सिमटा रहा है तो कुछ को समुद्र में और कुछ को इस कदर जलाया जा रहा है, जिससे आसमान के नीले और सफेद रंग को भी अपने नीले और सफेद होने पर सोचना पड़ रहा है। अब एकदम साफ आसमान की कल्पना धूमिल होती जा रही है। दुनिया के हर बंदरगाह की हालत खराब हो चली है। समुद्र और आसमान को स्वच्छ रखना मुश्‍किल होता जा रहा है।

3.न्यूक्लियर टेस्ट तो बहुत बड़ी घटना है लेकिन छोटी-छोटी घटनाओं से ही धरती माता का दिल दहल जाता है। अमेरिका या ब्रिटेन जैसे विकसित राष्‍ट्रों में पुरानी बिल्डिंग या स्‍टेडियम को गिराने के लिए धरती के भीतर 50-50 टन डाइनामाइट लगाए जाते है। इससे धरती भीतर से टूटती जा रही है।

4.अरब के एक खरबपति द्वारा दुबई के समुद्र में विशालकाय टापू बनाया जा रहा है जहाँ ‍दुनिया की सबसे खुबसूरत बस्ती बसाई जायेगी। इस टापू को बनाने के लिए अरब के कई पहाड़ों को मौत की सजा दी जा रही है। उक्त टापू को बनाने के लिए उस समुद्री स्थान पर रोज पाँच सौ टन पत्थर पहुँचता है। इस तरह की उथल-पुथल वहीं नहीं चीन, जापान, रशिया, अमेरिका आदि जगह पर हो रही है जो धरती को धरती नहीं रहने देगी।

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