सचिन शर्मा मध्यप्रदेश की औद्योगिक पट्टी इंदौर क्षेत्र में बहने वाली नर्मदा और ताप्ती नदियों को औद्योगिक प्रदूषण से बेहद खतरा है। यह खतरा मुख्यतः क्षेत्र के पाँच जिलों इंदौर, खण्डवा, खरगौन, बुरहानपुर और बड़वानी में स्थित लगभग १२०० छोटी औद्योगिक इकाइयों से है जो कंजूसी में प्रदूषण नियंत्रण के मानकों की परवाह नहीं करतीं और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उन्हें यह काम करने से रोक भी नहीं पाता। इस प्रदूषण से उक्त दोनों अमूल्य नदियों में धीरे-धीरे जहर घुल रहा है। इंदौर क्षेत्र में लगभग १३०० छोटी, बड़ी और मझोली औद्योगिक इकाइयाँ हैं। इनमें से बड़ी और मझोली इकाइयों की संख्या ७० है जबकि छोटी इकाइयां लगभग १२०० हैं। केन्द्र सरकार ने जल प्रदूषण रोकने के लिए १९७४ में जल प्रदूषण नियंत्रण कानून बनाया था जिसके तहत जीरो डिस्चार्ज के नियम का पालन होना था। लेकिन इन नियम का पालन उक्त इकाइयों में से सिर्फ बड़ी और मझोली यानी कुल ७० इकाइयां ही कर पाती हैं। छोटी औद्योगिक इकाइयां इस कानून की बराबर अनदेखी करती रहती हैं। इसका सबसे ज्यादा नुकसान बुरहानपुर और नेपानगर से बहकर गुजरने वाली ताप्ती नदी को होता है क्योंकि बुरहानपुर जिले में कॉटन प्रोसेसिंग और जीनींग औद्योगिक इकाइयां हैं जहां पानी का सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है। नर्मदा भी धीरे-धीरे औद्योगिक जहर का शिकार हो रही है जबकि इसका पानी तो इंदौर में पीने के लिए सप्लाई किया जाता है। बड़वाह स्थित शराब कारखानों से नर्मदा को सबसे अधिक प्रदूषण का खतरा है।
क्या है जीरो डिस्चार्ज..? जीरो डिस्चार्ज के तहत औद्योगिक इकाई को इस्तेमाल किए प्रदूषित पानी को बाहर निकालने के बजाए वापस अपने इस्तेमाल में लेना होता है। इससे प्रदूषित पानी प्राकृतिक स्त्रोत से नहीं मिल पाता है तथा उद्योग द्वारा स्वच्छ पानी के इस्तेमाल में भी कमी आती है। छोटे उद्योग इस नियम का पालन नहीं कर पाते और उनसे निकलने वाला प्रदूषित पानी प्राकृतिक स्त्रोतों से मिलकर प्रदूषण को बढ़ाता है। प्रदूषण उत्सर्जन के हिसाब से वर्गीकरण प्रदूषण उत्सर्जन को ध्यान में रखते हुए औद्योगिक इकाइयों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है। यह हैं लाल (सबसे ज्यादा प्रदूषण उत्सर्जित करने वाली इकाइयां), नारंगी (कम प्रदूषण उत्सर्जित करने वाली इकाइयां) और हरी (सबसे कम प्रदूषण उत्सर्जित करने वाली इकाइयां)। छोटी इकाइयों में तीनों ही प्रकार के उद्योग शामिल हैं।
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