शुक्रवार, 4 मार्च 2011

चिल्का पर गहराती चिंता...


संदीपसिंह सिसोदिया
एशिया में खारे पानी की सबसे बड़ी झील 'चिल्का' सदियों से इंसान और पशु-पक्षियों को सहारा देती आई है। पर उड़ीसा में स्थित इस विशाल झील पर अब चिंता के बादल छाने लगे हैं। मानव द्वारा अतिक्रमण के कारण प्रदूषण की मार झेलती इस झील के पारिस्थिति तंत्र को ग्लोबल वॉर्मिंग से भी खतरा है। लगातार सिकुड़ते जलक्षेत्र और पानी में घुलते प्रदूषण से इस झील की नैसर्गिक विशेषताओं का लोप होने लगा है। ऐसा लगता है कि लाखों देशी और प्रवासी पक्षियों के इस विश्वविख्यात रैन-बसेरे को मानो किसी की नजर लग गई है...
घटती आमद: जनवरी में हुई सालाना पक्षी गणना से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर तो यही कहा जा सकता है। इस साल 18-19 जनवरी को हुई सालाना बर्ड सेंसस के दौरान यहाँ पक्षियों की संख्या में 13 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसके मुकाबले पिछले साल यहाँ 924578 पक्षी आए थे जबकि इस साल यहाँ 804452 पक्षियों की आमद हुई।
चिल्का में स्थित नलबाना बर्ड सेंचुरी तथा उसके आस-पास के क्षेत्र में 18-19 जनवरी (दो दिनों) तक चली इस गणना में लगभग 90 लोगों ने भाग लिया जिनमें वन विभाग के अधिकारी और पक्षी विशेषज्ञ शामिल थे। इस साल होने वाली पक्षी गणना में पक्षियों की कुल 169 प्रजातियाँ चिंह्नित की गईं जिनमें से 103 प्रवासी पक्षियों की थी। हालाँकि पिछले साल 180 प्रजातियों की पहचान की गई थी, जिसमें से 114 प्रवासी पक्षियों की थी।
अधिकारी नहीं है चिंतित: प्रवासी पक्षियों की घटती तादाद पर राज्य वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दिसंबर में हुई बरसात के कारण इस साल झील में पानी का स्तर बढ़ा हुआ है जिस वजह से शायद प्रवासी पक्षियों की कुछ प्रजातियाँ यहाँ नहीं रुकी। इस साल आई कमी को साधारण मानते हुए अधिकारी कहते हैं कि पिछले 5 सालों का रिकॉर्ड दिखाता है कि पक्षियों की तादाद 7 लाख से 9 लाख रहती है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि इस बार भी इन पक्षियों की संख्या में कोई खास चिंताजनक गिरावट नहीं है।
कुछ स्थानीय पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भी यूरोप में जाड़े का मौसम है तो उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में कुछ और पक्षी यहाँ आएँ। यहाँ आने वाले प्रवासी पक्षियों की प्रमुख प्रजातियाँ है, राजहंस (फ्लेमिंगों) हरी और स्लेटी स्टॉर्क, चौड़ी चोंच वाली बतखें तथा स्पूनबिल की कई प्रजातियाँ, इसके अलावा कई देशज प्रजातियाँ भी यहाँ डेरा डालती हैं।
दूर देश से आते मेहमान: साइबेरिया, ईरान, इराक, अफगानिस्तान और हिमालय से हर साल यहाँ औसतन 10 लाख तक पक्षियों का जमावड़ा लगता है। उत्तरी गोलार्ध की जमा देने वाली सर्दियों से बचने के लिए हर साल अक्टूबर से मार्च तक प्रवासी पक्षी लाखों की तादाद में यहाँ जमा होते हैं। इन पक्षियों की इतनी बड़ी संख्या चिल्का को भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासी पक्षियों की सबसे बड़ी शरणस्थली बनाती है।
स्वर्ग पर संकट: गौरतलब है कि पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ उथले पानी में रहना पसंद करती है क्योंकि यहाँ पाए जाने वाले सरकंडे, जलीय झाड़ियाँ और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध केंकड़े, घोंघे, मछलियाँ जैसे शिकार इनके प्रजनन के लिए अत्यंत मुफीद होते हैं। पानी का स्तर बढ़ने से पक्षियों की कई प्रजातियाँ मनमाफिक जगह की तलाश में किसी और जगह का रुख कर लेती है। इसके अलावा चिल्का के किनारों पर बढ़ती मानव गतिविधियों के कारण भी इन पक्षियों पर आफत आ रही है। संरक्षित क्षेत्र में शिकार के मामले तो बढ़ें ही है, अतिक्रमण से भी इन पक्षियों के घरोंदे उजड़ रहे हैं।

जैव विविधता से लबरेज: बंगाल की खाड़ी से सटे भारत के पूर्वी राज्य उड़ीसा के पूर्वी तट पर 1100 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैली चिल्का या चिलिका झील पुरी, खुर्दा और गंजाम जिलों के अंतर्गत आती है। यह झील दुनियाभर के पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र है। यहाँ मछली पकड़ने, नौका विहार तथा बर्ड वॉचिंग के लिए पर्यटकों का तांता लगा रहता है। यह झील इतनी खूबसूरत है कि इसे हनीमूनर्स पैराडाइज भी कहा जाता है।
इसकी एक बड़ी विशेषता है कि वर्षाकाल में इस झील का पानी अपेक्षाकृत मीठा हो जाता है पर बाकि समय खारा होता है। इस झील में बड़कुदा, हनीमून, कालीजय, कंतपंथ, कृष्णप्रसादर, नलबाण, नुवापाड़ा तथा सानकुद जैसे अनेक छोटे-छोटे द्वीप हैं। महानदी तथा कई धाराओं द्वारा सिंचित इस झील को समुद्री ज्वार पानी से भर देते हैं। खारे-मीठे, उथले और गहरे पानी के संयोजन से यहाँ जलीय प्राणियों और पक्षियों की भरमार है। इस झील की यही खूबियाँ इसे जैव विविधता से भरपूर बनाती हैं।
चिल्का झील जैव विविधता से कितनी समृद्ध है इसका एक उदाहरण है यहाँ पाई जाने वाली दुर्लभ इरावदी प्रजाति की डॉल्फिन मछली, इसके अलावा भी यहाँ ऐसी अनेक प्रजाति की मछलियाँ मिलती है जिन पर न केवल यहाँ आने वाले पक्षी बल्कि आस-पास के गाँवो के लगभग 2 लाख मछुआरे भी निर्भर हैं।
चिल्का पर चिंतन: चिल्का पर चिंता कोई नई नहीं है, मीठे और नमकीन पानी के मिश्रण से बनी इस झील को वर्ष 1993 में खतरे में पड़ी आर्द्रभूमियों की सूची में शामिल कर लिया गया था जिसके बाद इस झील को सहेजने की कई सफल कोशिशों के बाद वर्ष 2001 में इसे फिर खतरे की सूची से हटा लिया गया था। पर अब फिर से यह चिंता सताने लगी है कि ग्लोबल वॉर्मिंग और बढ़ते मानवीय दबाव की वजह से शायद आने वाले कुछ सालों में एक बार फिर यह झील खतरे की सूची में न आ जाए।