गंगा को हम भारतवासी मां कहते हैं। गंगा ही नहीं सभी नदियां हमारे लिये मातृस्वरूप है। इतिहास साक्षी है कि सभ्यताओं का विकास नदियों के तट पर ही हुआ है। जल ही जीवन है, यह कथन इसलिये भी सत्य है कि जल के अभाव में, शुद्ध जल के बिना न वनस्पतियां उग सकती हैं, न खेती हो सकती है और न मनुष्य ही जीवित रह सकता है इसलिये जो हमें जीवन देती है उसे मां कहते है। गंगा के अभाव में सागर पुत्रों को पुर्नजीवन प्राप्त नहीं हो सकता था अर्थात यदि गंगा धरती पर न आती तो अन्य नक्षत्रों की भांति हमारी धरती भी आज जीवहीन होती इसलिये जीवन के ऋण से मुक्त होने के वास्ते हम भारतवासियों का कर्तव्य है कि हमारे ही द्वारा प्रदूषित हो रही गंगा को हम अपने सामूहिक प्रयास से उसे उसी भांति प्रदूषण मुक्त करने का संवेद प्रयास करें जैसे पुत्र अपनी मां को निरोगता प्रदान करने के लिये संकल्पबद्ध होकर उसके लिये औषधि आदि का प्रबंध करते हैं।
औद्योगिक क्रांति एवं बढती आबादी के प्रदूषण ने गंगा के जल को दूषित किया है इसलिये जहां-जहां भी गंगा के तट पर फैक्टरियां बनी हैं और जिन गंदे नालों का पानी गंगा में गिराया जाता है उसे अविलम्ब बंद कराने का जनता द्वारा दबाव बनाया जाना चाहिये और सरकार को अपने स्तर से वे सारे प्रयास करने चाहिये जिससे गंगा को प्रदूषित करने वाली स्थितियां समाप्त हो सकें।
विश्व में नदियां तो तमाम है किन्तु गंगा के जल में ही वे तत्व पाये जाते है इसका जल वर्षों किसी बोतल में रखे रहने पर भी खराब नहीं होता यही कारण है कि धार्मिक रूप में हो या वैज्ञानिक कारणों से गंगा का सम्मान हर धर्म के लोगों ने सदैव किया है। मुगल बादशाहों के यहां तो पीने के पानी के स्थान पर गंगाजल का प्रयोग होता रहा है। आज भी गंगा भारतीय संस्कृति की मां कही जाती है और इसका जल मरते समय प्राणी के मुंह म डालकर यह कामना की जाती है कि मां उसे मोक्ष प्रदान करेगी
गंगा के प्रदूषण को समाप्त करने में कछुआ, मछली, घडयाल ऐसे जल जीवों का योगदान रेखांकित करने योग्य है। इधर कछुओं को मारकर उनका व्यापारिक उपयोग किया जा रहा है इसलिये जल जीवों को विनष्ट करने की प्रथा समाप्त होनी चाहिए उनके अभाव में गंगा को प्रदूषण मुक्त नहीं किया जा सकता। हिन्दू धर्म में जिन शवों को जल में प्रवाहित करने का विधान रहा है उसके पीछे मानव शरीर को इन जंतुओं के लिये भोज्य पदार्थ के रूप में अर्पित कर उनकी क्षुधा तृप्ति से जीवन की आत्मा को शांति प्रदान करने की पुण्य मंशा हो रही है लेकिन इन जल जीवों की घटती जनसंख्या से जल प्रवाह किये गये शव भी गंगा को प्रदूषित करने में तो महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कर ही रहे हैं इसलिये जल के बढाने का या उनके पर्याप्त मात्रा में होने का प्रयास किये बिना इस प्रकार का शव प्रवाह भी गंगा के पवित्र जल को प्रदूषित करता है। अक्सर हम देखते हैं कि कुछ लाशें गंगा में तैरती दिखाई पडती हैं उन्हें खाने वाले जीवों के अभाव के कारण लाश सडती रहती है और जल की जीवन प्रदायिनी शक्ति समाप्त हो जाती है। इस ओर भी बिना हमारे ध्यान दिये गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं होगी।
हमें हर बात के लिये सरकार की ओर देखने की आदत छोड देनी चाहिये। सरकार भी हमारे भावनात्मक सहयोग के अभाव में कुछ नहीं कर सकती। हमें अपने स्तर से वो सारे कार्य बंद कर देने चाहिए जिससे मां का पवित्र जल प्रदूषित होता है। आइए संगठित होकर मन से एक ऐसा संकल्प लें जिससे हम
अपने को भारतवासी मां गंगा के पुत्र तथा उस संस्कृति के रक्षक कहला सकें जिसने प्राचीनकाल से अब
तक विश्व को रचनात्मक संदेश दिये हैं।
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