पेड़ हवा को साफ करते हैं : पेड़ हवा में मौजूद कणों को तोड़कर हवा को शुद्ध बनाते हैं, ये गर्मी को कम karate हैं और कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन डाईऑक्साइड को सोखते भी हैं।
पेड शोर को प्रभावी रूप से कम करते हैं : पेड़, पत्थरों की दीवार की तरह शोर को कम करते हैं, ये किसी पत्थर की दीवार की भांति ही शहरी शोर को बड़े प्रभावी रूप से कम करते हैं, आपके पड़ोस या घर के आसपास महत्वपूर्ण स्थानों पर लगाए गए पेड़ भीड़ भरी सड़कों, रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डों से आने वाले प्रमुख शोर को काफी हद तक घटा देते हैं।
पेड़ ऑक्सीजन पैदा करते हैं : एक पूर्ण रूप से विकसित पेड़ कुछ ही महीनों में इतनी ऑक्सीजन पैदा करने लगता है, जितनी दस व्यक्तियों को एक साल में चाहिए।
पेड़ नुकसानदायक गैसों को सोखने के लिए किसी कूड़ेदान जैसी भूमिका निभाते हैं : पेड़ कार्बनडाई ऑक्साइड और वातावरण को गर्म करने वाली नुकसानदायक गैसों को सोख कर अपने भीतर जज्ब कर लेते हैं। शहर में मौजूद कोई वन, कार्बन को स्टोर करने वाले किसी क्षेत्र जैसा होता है जो कार्बन को अपने अंदर रोक लेता है।
पेड़ छाया भी देते हैं और ठंडक भी : पेड़ों से मिलने वाली छाया के कारण गर्मियों में पंखे, कूलर और एयर कंडीशनर की जरूरत कम पड़ती है। अध्ययन से पता चला है कि शहरों के जिन हिस्सों में पेड़ों की छाया उपलब्ध नही होती, वे किसी गर्म द्वीप जैसे बन जाते हैं जहां का तापमान आसपास के इलाकों के मुकाबले 4 से 6 डिग्री सैल्सियस ज्यादा होता है। सर्दियों में पेड़ ठंडी हवाओं की रफ़्तार को कम करते हैं।
पेड़ हवा की तेज रफ़्तार को रोकने का काम भी करते हैं : पेड़ हवा की शक्ति को कम कर देते हैं और इस तरह घरों, खेतों और वनस्पति को बचाते हैं।
पेड़ मिट्टी के कटाव को रोकते हैं पेड़ मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, बारिश के पानी का संरक्षण करते हैं साथ ही तूफान के बाद के जल बहाव और गाद के जमाव को रोकते हैं।
सांस से जुड़ी समस्याओं को कम करते हैं - जो बच्चे पेड़ों की बहुतायत वाले इलाकों में रहते हैं उनमें सांस संबंधी समस्याएं कम होती है, जबकि जहां पेड़ नही हैं, वहां रहने वाले बच्चे ऐसी समस्याओं से ज्यादा ग्रस्त रहते हैं।
"पर्यावरण शिक्षा को केवल पेड़-पौधों, जानवरों और केवल संरक्षण तक ही सीमित नही किया जा सकता है। इसका उद्देश्य होना चाहिए स्थान और समय के पैमाने पर बच्चे, जीवित और अजीवित वस्तुओं के बीच एक रिश्ता कायम कर पाएं। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ जैसे वैदिक सूत्रों में भी संतुलन और साम्य पर जोर दिया गया है। साथ ही अनुशासन और सहचर जैसे महान गुणों को भी बताया गया है। वेदों में प्रत्येक व्यक्ति की अपने दैनिक जीवन के प्रति संवेदना के कई उदाहरण मिलते हैं। जिसमें एक दूसरे पर निर्भरता के धर्म को स्वीकार किया गया है। भले ही वस्तु जीवित हो या निर्जीव, सभी जीवों, वस्तुओं और धरती माता के प्रति आदर इसी का परिणाम हैं।हम सभी जानते हैं कि पर्यावरण सभी को अपने में समेटने वाला शब्द है। इसमें सभी प्रकार की प्राकृतिक, भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक एवं आर्थिक क्रियाओं को शामिल किया जाता है। यह एक साझा पटल पर जीवित और निर्जीव पदार्थों के बीच का संबंध है जिसमें काल के सभी चक्र भूत, भविष्य और वर्तमान समाहित हो जाते हैं
" स्कूली बच्चों के लिए तैयार किया गया पर्यावरण साहित्य कुछ अपवादों को छोड़कर करीब-करीब प्रकृति की शिक्षा ही है। छोटे-छोटे बच्चों को प्राकृतिक सुदंरता और आश्चर्यों से वाकिफ कराना अति महत्वपूर्ण है। परन्तु जैसे-जैसे बड़े होते जाते है उनके लिए ये समझना अतिआवश्यक है कि किस तरह से मानव और मानव समुदाय जीवित रहने के लिए वातावरण के साथ अंतःक्रिया करते हैं। यह अंतःक्रिया किस तरह से समाज की संस्कृति का अंग बन जाती है और क्यों पर्यावरण के साथ हमारा ये संबंध इतना महत्वपूर्ण है। "
यह ब्लॉग स्वयं सेवी संस्था पीपल फार एन्वायरमैंट (People For Environment) द्वारा संचालित है। हमारा उद्देश्य पैप्लेट, समाचारत्र, पत्रिकाओं तथा वर्कशॉप्स के माध्यम से लोगों में पर्यावरण संबंधी जागरुक्ता लाना है। विशेषकर स्टूडैंट्स में पर्यावरण संरक्षण के संबंध में तरह-तरह की प्रतियोगिताओं द्वारा पर्यावरण जागरुक्ता का संचार किया जाता है। आप भी संस्था से जुडकर कार्य-योगदान कर सकते हैं। ईमेल करें- pfeindia@gmail.com